अक्सर लोग पूछते है की मै इंग्लिश में क्यों नहीं लिखता , और सुझाव भी देते है कि अगर मै इंग्लिश में लिखूं तो मेरा ब्लॉग ज़्यादा पढ़ा जाएगा। बेशक सभी सही बोलते है , इंग्लिश " लिंग्वा फ्रैंका " है। पिछले कुछ आठ दस सालो पर गौर कीजिये , इंग्लिश और इंग्लिशपन हमारे अंदर तेज़ी से घुसा है। "अंग्रेज़ियत " LPG ( लिब्र्लाइजेशन , प्राइविटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन ) का बाई प्रोडक्ट है , जिस से बचा नहीं जा सकता था। जिन लोगो को अंग्रेजी का ज्ञान भी नहीं होता वो भी अँगरेज़ होते है। टैक्सी वाले ( जिन्हे अब कैब और कैबी कहा जाता है ) , सब्ज़ी की दुकान वाले , पान वाले भैय्या , खेती किसानी करने वाले, ट्रैन के अटेंडेंट्स , हवाई जहाज के सफाई कर्मी , होटल के वेटर्स या कूली, आप चाहे जिसका नाम ले , सब पर्याप्त रूप से अंग्रेजी का इस्तेमाल करते है। ये अंग्रेजी समझते भी है और मोबाइल , ATM , इंटरनेट पे काम चलाऊ अंग्रेजी लिख भी लेते है। मतलब ये की अब अंग्रेजी सिर्फ कान्वेंट एजुकेटेड या ब्लू कालर वाले पढ़े लिखे और संभ्रांत लोगो की लोगो की बपोती नहीं रही , अंग्रेजी का एक्स्पोज़र रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में इतना ज्यादा हो गया है कि एक औसत से भी कम बुद्धि का इंसान अगर अपने आँख और कान खोल कर जिए तो सिर्फ दो साल में बेहतरीन कामचलाऊ अंग्रेजी सीख सकता है। सैकड़ों शब्द तो सिर्फ टीवी ने जोड़े दिए है हमारी 'लेक्सिकन ' में। जैसे जैसे टेक्नोलॉजी ज़िन्दगी के अंदर पैंठ बना रही है वैसे वैसे अंग्रेजी भी जड़े जमा रही है। ऐसे समय में अंग्रेजी को समझने लायक ज्ञान होना कोई बड़ी बात नहीं रही। लेकिन सिर्फ व्यवहारिक अंग्रेजी भर आने से कोई डिप्लोमेट या ब्यूरोक्रेट नहीं बन सकता। उसके लिए अन्ग्रेज़ी का मर्मज्ञ होना आवश्यक है , शब्दों के और भाषा के गूढ़ अर्थ की समझ होना आवश्यक है। अंग्रेजी वो भाषा है जो दुनिया के सभी गैर -अंग्रेजी भाषियों लोगो को आपस में जोड़ती है , ये भाषा पूरी दुनिया को एक कलेक्टिव प्लेटफार्म पे लाती है। ऐसे में अंग्रेजी की गहरी समझ नहीं होना एक कमी है। स्मार्ट फ़ोन और इंटरनेट की भाषा में कहे तो " IAS वो प्रोग्राम्स और एप्स है जो देश को चलाते है"। कूटनीतिक फैसले लेना , अंतराष्ट्रीय मंचो पर देश की और से 'सामूहिक सौदेबाज़ी' करना , सामरिक निर्णय लेने जैसे अनेक महत्वपूर्ण कामोँ के लिए उच्च स्तरीय अंग्रेजी का ज्ञान होना ज़रूरी है। इसलिए ऐसे महत्वपूर्ण ओहदों पर नौकरी दिलाने वाली प्रक्रिया में अंग्रेजी की तगड़ी परीक्षा ज़रूरी होना चाहिए। मेरा ब्लॉग बिना अंग्रेजी के भी चल सकता है , लेकिन ये देश अब बिना अंग्रेजी के नहीं चल सकता। नेपाल में हिंदी में काम चल सकता है लेकिन अमेरिका में तो अंग्रेजी बोलना भी पढ़ेगी और धड़धड़ाती अंग्रेजी समझना भी पढ़ेगी। ऐसे में अंग्रेजी के मर्मज्ञ अधिकारियों और नौकरशाहों की ज़रूरत होती है, काम चलाऊ अंग्रेजी जानने वालो की नहीं।
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