Thursday, August 21, 2014

।। श्री राम ।।

।। श्री राम ।।




श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं।
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणं॥१॥

( ओ मन , तू करुणानिधान श्री राम चन्द्र का भजन कर , जो जन्म मरण और पुनर्जन्म के भय को हर लेते है. उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है. मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं. )

कन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील-नीरद सुन्दरं।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं॥२॥

( जिनकी छवि असंख्य कामदेवों और नवीन नीले बादल के जैसी अलोौकिक है, उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुंदर वर्ण है. पीताम्बर मेघरूप शरीर मे मानो बिजली के समान चमक रहा है. ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हू.     ) 

भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकंदनं।
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनं॥३॥

हे मन! दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी , दानव और दैत्यो के वंश का समूल नाश करने वाले,आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान, दशरथनंदन श्रीराम का भजन कर. ) 

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अंग बिभूषणं।
आजानुभुज शर-चाप-धर संग्राम-जित-खरदूषणं॥४॥


( जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, भाल पर तिलक और प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है. जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है. जो धनुष-बाण लिये हुए है. जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है.)

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।
मम हृदय-कंज निवास कुरु कामादि खलदल-गंजनं॥५॥


(जो शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले और काम,क्रोध,लोभादि शत्रुओ का नाश करने वाले है. तुलसीदास प्रार्थना करते है कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे)

मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सांवरो
करुना निधान सुजान शील सनेहु जानत रावरो॥६॥


(जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से ही सुंदर सावला वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा. वह दया का खजाना और सुजान (सर्वग्य) है. तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है )

ऐहि भांति गौरि अशीश सुनि सिये सहित हिये हर्सि अली।
तुलसि भवानिहि पुजि पुनि पुनि मुदित मन मन्दिर चली।।७।।


(इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखिया ह्रदय मे हर्सित हुई. तुलसीदासजी कहते है-भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली )

जानि गौरि अनुकूल, सिय हिय हरसु न जाहि कहि।
मन्जुल मंगल मूल, बाम अंग फ़रकन लगे।।


(गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के ह्रदय मे जो हरष हुआ वह कहा नही जा सकता. सुंदर मंगलो के मूल उनके बाये अंग फडकने लगे ) 

- गोस्वामी तुलसीदास जी 

ऐसा कहा जाता है कि विवाह योग्य कन्याए श्री राम की यह वंदना श्रद्धापूर्वक करे तो उन्हें सुयोग्य एवं मनवांछित  वर की प्राप्ति होती है।  अगर किसी कन्या  के विवाह में कोई व्यवधान या बाधा आ रही हो तो वह भी श्री राम की इस स्तुति से दूर हो  जाती है।  

Friday, August 15, 2014

आज़ादी

हम आज़ाद है , हम आज़ाद है
कहता है ये ज़माना
दरअसल
हम आज़ादी की गिरफ्त  में है

Sunday, August 10, 2014

God


A University professor at a well known institution of higher learning challenged his students with this question. "Did God create everything that exists?" 

A student bravely replied, "Yes he did!" 

"God created everything?" The professor asked. 

"Yes sir, he certainly did," the student replied. 

The professor answered, "If God created everything; then God created evil. And, since evil exists, and according to the principle that our works define who we are, then we can assume God is evil." 

The student became quiet and did not answer the professor's hypothetical definition. The professor, quite pleased with himself, boasted to the students that he had proven once more that the Christian faith was a myth. 

Another student raised his hand and said, "May I ask you a question, professor?" 

"Of course", replied the professor. 

The student stood up and asked, "Professor, does cold exist?" 

"What kind of question is this? Of course it exists. Have you never been cold?" 

The other students snickered at the young man's question. 

The young man replied, "In fact sir, cold does not exist. According to the laws of physics, what we consider cold is in reality the absence of heat. Every body or object is susceptible to study when it has or transmits energy, and heat is what makes a body or matter have or transmit energy. Absolute zero (-460 F) is the total absence of heat; and all matter becomes inert and incapable of reaction at that temperature. Cold does not exist. We have created this word to describe how we feel if we have no heat." 

The student continued, "Professor, does darkness exist?" 

The professor responded, "Of course it does." 

The student replied, "Once again you are wrong sir, darkness does not exist either. Darkness is in reality the absence of light. Light we can study, but not darkness. In fact, we can use Newton's prism to break white light into many colors and study the various wavelengths of each color. 

You cannot measure darkness. A simple ray of light can break into a world of darkness and illuminate it. How can you know how dark a certain space is? You measure the amount of light present. Isn't this correct? Darkness is a term used by man to describe what happens when there is no light present." 

Finally the young man asked the professor, "Sir, does evil exist?" 

Now uncertain, the professor responded, "Of course, as I have already said. We see it everyday. It is in the daily examples of man's Inhumanity to man. It is in the multitude of crime and violence everywhere in the world. These manifestations are nothing else but evil. 

To this the student replied, "Evil does not exist, sir, or at least it does not exist unto itself. Evil is simply the absence of God. It is just like darkness and cold, a word that man has created to describe the absence of God. God did not create evil. Evil is the result of what happens when man does not have God's love present in his heart. It's like the cold that comes when there is no heat, or the darkness that comes when there is no light." 

The professor sat down. 

The young man's name - Albert Einstein

Wednesday, August 6, 2014

इंग्लिश -विंग्लिश

अक्सर लोग  पूछते है की मै इंग्लिश में क्यों नहीं लिखता , और सुझाव भी देते है कि अगर मै इंग्लिश में लिखूं तो मेरा ब्लॉग ज़्यादा पढ़ा जाएगा।  बेशक सभी सही बोलते है , इंग्लिश " लिंग्वा फ्रैंका " है।  पिछले कुछ आठ दस  सालो पर गौर कीजिये , इंग्लिश और इंग्लिशपन हमारे अंदर तेज़ी से घुसा है।  "अंग्रेज़ियत " LPG ( लिब्र्लाइजेशन , प्राइविटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन ) का बाई प्रोडक्ट है , जिस से बचा नहीं जा सकता था।  जिन लोगो को अंग्रेजी का  ज्ञान भी नहीं होता वो भी अँगरेज़ होते है।  टैक्सी वाले ( जिन्हे अब कैब और कैबी कहा जाता है ) ,  सब्ज़ी की दुकान वाले , पान वाले भैय्या , खेती किसानी करने वाले, ट्रैन के अटेंडेंट्स , हवाई जहाज के  सफाई कर्मी , होटल के वेटर्स  या  कूली, आप चाहे जिसका नाम ले , सब  पर्याप्त  रूप से अंग्रेजी का  इस्तेमाल करते है।  ये अंग्रेजी समझते भी है और मोबाइल , ATM , इंटरनेट पे काम चलाऊ अंग्रेजी लिख भी लेते है।  मतलब ये की अब अंग्रेजी सिर्फ कान्वेंट एजुकेटेड या ब्लू कालर वाले पढ़े लिखे और संभ्रांत लोगो की लोगो की बपोती नहीं रही , अंग्रेजी का एक्स्पोज़र  रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में इतना ज्यादा हो  गया है कि एक औसत से भी कम बुद्धि का इंसान अगर अपने आँख और कान खोल कर जिए तो सिर्फ दो साल में बेहतरीन कामचलाऊ अंग्रेजी सीख  सकता है।  सैकड़ों शब्द  तो सिर्फ टीवी ने जोड़े दिए है हमारी 'लेक्सिकन ' में।  जैसे जैसे टेक्नोलॉजी ज़िन्दगी के  अंदर पैंठ बना रही है वैसे वैसे अंग्रेजी भी जड़े जमा रही है।  ऐसे समय में अंग्रेजी को समझने लायक  ज्ञान होना कोई बड़ी बात नहीं रही।  लेकिन सिर्फ व्यवहारिक अंग्रेजी भर आने से कोई डिप्लोमेट या ब्यूरोक्रेट नहीं  बन सकता। उसके लिए अन्ग्रेज़ी का मर्मज्ञ होना आवश्यक है , शब्दों के  और भाषा के गूढ़ अर्थ की समझ होना आवश्यक है।  अंग्रेजी वो भाषा है जो दुनिया के सभी  गैर -अंग्रेजी भाषियों  लोगो को आपस में जोड़ती है , ये भाषा पूरी दुनिया को एक कलेक्टिव प्लेटफार्म पे लाती है। ऐसे   में अंग्रेजी की गहरी  समझ नहीं होना एक कमी है। स्मार्ट फ़ोन और इंटरनेट की  भाषा में कहे तो " IAS वो प्रोग्राम्स  और एप्स है जो देश को चलाते है"। कूटनीतिक फैसले लेना , अंतराष्ट्रीय मंचो पर देश की और से 'सामूहिक सौदेबाज़ी' करना , सामरिक निर्णय लेने जैसे अनेक महत्वपूर्ण  कामोँ के लिए उच्च स्तरीय अंग्रेजी का ज्ञान होना  ज़रूरी है।  इसलिए ऐसे महत्वपूर्ण ओहदों पर नौकरी दिलाने वाली प्रक्रिया  में अंग्रेजी की तगड़ी परीक्षा ज़रूरी होना चाहिए।  मेरा ब्लॉग बिना अंग्रेजी के भी  चल सकता है , लेकिन ये देश अब बिना अंग्रेजी के नहीं चल सकता।  नेपाल में हिंदी में काम चल सकता है लेकिन अमेरिका में तो अंग्रेजी बोलना भी पढ़ेगी और धड़धड़ाती अंग्रेजी समझना भी पढ़ेगी।  ऐसे में अंग्रेजी के मर्मज्ञ अधिकारियों और नौकरशाहों की ज़रूरत होती है, काम चलाऊ अंग्रेजी जानने वालो की नहीं।