मै सार्वजानिक क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण बैंक ( PSB) का सुस्त और आलसी बैंकर हूँ , मेरी ब्रांच के ठीक बाजू में निजी क्षेत्र की एक राकस्टार बैंक की ब्रांच है । मेरी ब्रांच का गार्ड सारे दिन आगंतुक ग्राहकों के वाहनों को व्यवस्थित रूप से पार्क करवाने के लिए जद्दोजेहद करता है और राकस्टार बैंक का गार्ड सारे दिन कुर्सी पर आराम से बैठे रहता है क्योकि उसके यहाँ जितने ग्राहक पूरे महीने में आते है उतने मेरे यहाँ एक हफ्ते में आते है । मेरी ब्रांच औसत 300 बचत खाते हर महीने खोलती है और मेरी शाखा से जुड़े 4 ग्राहक सेवा केंद्र ( बैंक मित्र ) प्रधानमंत्री जन धन योजना के औसत 300 बचत खाते प्रतिदिन खोलते है । जितना स्टाफ मेरी शाखा में है उतना है स्टाफ राकस्टार बैंक की ब्रांच में है । राकस्टार बैंक की ब्रांच प्रतिदिन 6.30 पर बंद हो जाती है जबकि मेरी ब्रांच के अधिकारी 7.30 तक काम करते है । मेरी ब्रांच के दोनों ATMs पे सारे दिन ग्राहकों का मेला रहता है वन्ही राकस्टार बैंक का इकलौता ATM ग्राहकों की राह तकता है । मेरी शाखा में आने वाले ज्यादातर ग्राहक निम्न वर्ग के होते है क्योकि उनके लिए मेरी बैंक का नाम ही बैंकिंग का पर्याय है ,उन्हें राकस्टार बैंक का लम्बा सा नाम समझ ही नहीं आता और अगर वो कभी उस राकस्टार बैंक की शाखा में प्रवेश करने की सोचें भी तो वंहा टाई पहने खड़ा गार्ड खड़ा देखकर उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है ।
चाहे किसी को LPG सब्सिडी के लिए खाता खुलवाना हो , या जननी सुरक्षा के लिए या फिर शिक्षा ऋण लेना हो सब मेरी शाखा ही आना पसंद करते है क्योकि में आलसी और सुस्त हूँ । प्रधानमंत्री जनधन योजना के खाते खुलवाने के लिए तो मेरी जैसी PSBs ही लोगों की पहली पसंद है ।ज़ाहिर सी बात है जनधन योजना के खाते तो जनता की बैंक ही खोलेगी , राकस्टार बैंक में तो राकस्टार लोगों के खाते खोले जाते है ।
ये कहानी सिर्फ मेरी बैंक की नहीं है , आजादी के बाद से हम जैसे सुस्त और आलसी बैंकर्स ही इस देश की इकनामी को आगे बढ़ा रहे है । सरकार की जन कल्याणकारी और कई बार राजनीतिक मह्त्वाकान्क्षाओ की योजना को अमली जामा पहनाने का दारोमदार भी हम जैसे सुस्त और आलसी बैंकर्स पर ही रहा है ।
जोशी जी,
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कहा है। ये हमें सुस्त बैंकर कहने वाले भी जरूरत पड़ने पर हमारी ओर ही देखते हैं.
Sir,
ReplyDeleteyou have narrated & depicted true story of Lazy bankers.