Friday, December 20, 2013

ग्रे मैटर्स

एल्विन टॉफलर एक ब्रिलियंट फ्यूचरिस्ट और  लेखक है , उन्होने कई किताबे लिखी है।  मैंने उनमे से एक पढ़ी है , 'द थर्ड वेव'।  इस किताब में टॉफलर ने ह्यूमन सोसाइटी के  एवोल्यूशन को तीन वेव्स के माध्यम से समझाया है। पहली वेव में इंसान खेती-बाड़ी तक आया , दूसरी में फैक्ट्री और मशीनो तक आया  और उसके बाद की  वेव, यानि थर्ड वेव  में माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और  फेसबुक तक आगया और अभी भी आगे जाता जा रहा है।  पहली वेव में उसकी चलती थी जिसके बाजुओं में जान थी , दूसरी वेव में उसकी चली किसकी मशीनो में जान थी और तीसरी वेव में याने अभी उसकी चलती है जिसके दिमाग में जान है।  ये जमाना उनका है जिनके पास " एक्शनेबल नॉलेज " है।  " एक्शनेबल नॉलेज " को ही हम आईडिया कहते है। बिल गेट्स के आईडिया से निकले माइक्रोसॉफ्ट ने उनको दुनिया का सबसे अमीर इंसान बना दिया , जितना पैसा कमाने में वारेन बुफे को 40 से ज्यादा साल लगे उतना बिल गेट्स ने 10 साल में पीट लिया। मार्क ज़ुकरबर्ग , लॉरी पेज , सर्जेई ब्रिन , स्टीव जॉब्स , लारी ऐलिसन , स्कॉट मेकनेली , विनोद खोसला , सबीर भाटिया या नारायणमूर्ति ये सब वो लोग है जिन्होंने अपने आइडियाज के दम पे दुनिया को बदल दिया। वाकई आज का जमाना उनका है जिनके पास आईडिया है , एक्शनेबल नॉलेज है।  

कई बार दिमाग लगाता हूँ कि कोई ऐसा ही पाथ-ब्रेकिंग आईडिया मेरे दिमाग में भी आजाए , जिस से मै दुनिया को बदल दूँ और मेरी भी दुनिया बदल जाए।  कुछ आइडियाज आते भी है लेकिन पता पढता है कि वो पेहले ही किसी के दिमाग में आ चुके है।  अभी थोड़े दिन पहले अख़बार में आया कि बिल गेट्स ने एक कांटेस्ट का  एलान किया है कि वो भविष्य के लिए एक बेहतर कॉन्डम इन्वेंट   करने वाले को एक लाख डॉलर देंगे।  एक ऑपर्चुनिटी नज़र आयी कि शायद कोई ऐसा आईडिया आ जाए कि बात बन जाए।  बहुत सोचा , बहुत तरीके से सोचा मगर नतीज़ा सिफर रहा।  इतना आसान रहता कि मेरे जैसे टॉम 'डिक ' हैरी के दिमाग में आजाए तो बिल गेट्स एक लाख डालर देते क्या ? पहली  बार सुनके एब्सर्ड सा नज़र आने वाला ये कांटेस्ट असल में बिल ने बड़ी दूरगामी सोच और बड़े फायदों को ध्यान में रखकर लांच किया है।  अफ्रीका और एशिया में सेक्सुअली ट्रांसमिटेड बीमारियां हर साल लाखों लोगो की जान ले लेती है , इन् बीमारियों के इलाज़ में लगने वाला पैसा और इससे होने वाले मैनपावर और मेन डेज़ के नुकसान को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है कि लोगो को  कॉन्डम का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जाये। सुना है कि इस कांटेस्ट में 800 से ज्यादा एंट्रीज़ आयी और उनमे से 11 को फाइनली शॉर्टलिस्ट किया गया है।  जल्द ही एक और आईडिया दुनिया में सुखद और आनंददायी बदलाव लेकर आने वाला है , मतलब ये कि 1 लाख डालर  का कांटेस्ट  सबको लाखो का सुख देने वाला है।  वैसे बिल गेट्स के कॉन्टेस्ट पे आप भी आईडिएटे करके देखना , दिमागी मासपेशियों की फर्टिलिटी का अंदाज़ हो जाएगा।  


Wednesday, December 18, 2013

आपके कमरे में कोई रहता है

आजकल आरडी बर्मन छाए हुए है मेरे म्यूजिकल इकोसिस्टम  में। वैसे हर अच्छे कंपोजर के लिए मेरे कान खड़े ही रहते है लेकिन बीच-बीच में कभी -कभी आरडी का दौरा पढता है , सुबह शाम आरडी आरडी , और हर दौरे में कुछ नया डिस्कवर करता हूँ आरडी के बारे में।     आरडी  अपने टाइम से आगे के कंपोजर थे , स्मार्ट और प्रोग्रेसिव म्यूजिक बनाते थे। आज आरडी का एरा बीते 20 साल से भी ज्यादा होने आए लेकिन उनके बनाये गानो से हर रेडियो स्टेशन और देश के कई नामचीन RJs अपनी दुकान चला रहे है।  मेरे ख्याल से जितनी ज्यादा रीमिक्सेस आरडी के गानों कि बनी है उतनी किसी कि नहीं।   रात १० बजे के बाद आप कोई भी FM लगा लीजिये , हर स्टेशन पे " क़तरा -क़तरा मिलती है " " रोज़ रोज़ आँखों तले " " तुम आगये हो नूर आगया है " या आरडी का ही कोई गाना बजता मिलेगा। आरडी बर्मन के समकालिक लक्ष्मीकांत प्यारेलाल , कल्याण जी आनन्द जी , खैय्याम, इलियाराजा , बप्पी लहरी  जैसे  असाधारण प्रतिभा के धनी  दिग्गज़  थे बाउजूद इसके आरडी ने अपने लिए एक निश् कार्व कर ली थी।  आरडी बर्मन ने  ही  हिंदी फिल्मो में  टेक्नोलॉजी बेस्ड म्यूजिक का  सूत्रपात  किया था ,  आरडी कि कम्पोज़िशंस तकनीकी  दृष्टि से उच्चकोटि कि होती थी , आप आरडी का कोई गाना एक अच्छे 5.1 ऑडियो सिस्टम में सुनिये आपको लगेगा कि ये आज के हाईटेक स्टूडियो में रिकॉर्ड किया गया है जबकि आरडी के गाने उस वक़्त रिकॉर्ड हुए थे जब ना तो  200  ट्रैक कंसोल होते थे , नहीं लेयर्ड रिकॉर्डिंग , ना डिजिटल रिकॉर्डिंग और ना आई-पेड रिकॉर्डिंग। आरडी अपने समय में उपलब्ध सबसे अच्छी टेक्नोलॉजी का उपयोग करते थे , इसी वजह से उनकी प्रयोगधर्मिता ज्यादा प्रभावकारी रूप में सामने आती थी।

ऐसे ही गिटार का जितना ज्यादा और जितना खूबसूरत इस्तेमाल आरडी ने किया उतना हिंदी के किसी कंपोजर ने नहीं किया। भारत में हिप्पी कल्चर को जिन जिन फैक्टर्स ने फॉस्टर किया उसमे आरडी कि गिटार बेस्ड कम्पोज़िशंस का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है।  " दम मारो दम " में  आजभी उतना ही  दम है  जितना तब था। मुझे याद है , मुझे कीबोर्ड सिंथेसाइज़र सीखने वाले मेरे सर  श्री विनोद गोलछा के यहाँ जितने भी  लोग गिटार सीखने आते थे सबकी एक प्रबल इच्छा होती थी कि सबसे पहले ' यादों कि बारात ' का " चुरा लिया है तुमने " सीखें क्योकि इस गाने के शुरू में गिटार का जो पीस है वो कातिल है और बजाने में बड़ा आसान भी है ।   आरडी के गानो में गिटार कि कॉर्ड्स एकदम इनटेन्स होती है  और स्पष्ट सुनाई देती है , गिटार की समझ रखने वाले आसानी से फिगर आउट कर लेते है कि कॉर्ड मेजर है , माइनर है, सेगमेंटेड है, बार्र्ड है  या सेवंथ है। इसीलिए गिटार सीखने वालों को आरडी के गाने या फिर  आज का सूफी रॉक ( कैलाश खेर वाला जॉनर ) बड़ा मुफीद लगता है।

आरडी बर्मन का ज़िक्र गुलज़ार के बिना अधूरा है , और गुलज़ार का ज़िक्र भी आरडी बर्मन के बिना कभी मुकम्मल नहीं होगा ।  दोनों ने मिलके हिंदी फ़िल्म म्यूजिक को जितना  समृद्ध किया और जो ऊंचाइया दी वो सब जानते है।  'आंधी ' 'घर ' 'घरोंदा ' ' परिचय ' ' मासूम ' 'खूबसूरत ' 'किनारा ' ऐसी अनेक फिल्मे है जो इन दोनों कि जुगलबंदी ने अमर कर दी है।  गुलज़ार जैसे बेलगाम और 'बेमीटर' लिरिसिस्ट को अगर किसीने  सबसे बेहतरीन ढंग से सुरों में बांधा है तो वो आरडी बर्मन ही थे।  और अब ये काम ए आर रहमान और विशाल भारद्वाज कर रहे है।  गुलज़ार कुछ भी लिख देते थे और आरडी बर्मन उस कुछ भी कि धुन बना देते थे।  इनके बारे में एक किस्सा फेमस है , एक बार गुलज़ार कुछ लिख के लाये और आरडी को उसकी धुन बनाने को कहा , आरडी ने पढ़ा और झुंझलाकर कहा  कि ये क्या  लिख के लाए हो  ?  कल से तुम टाइम्स ऑफ़ इंडिया का एडिटोरियल उठा के लेआओगे और कहोगे कंपोज़ करो !!  वो गाना था फ़िल्म 'इजाज़त ' का " मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पढ़ा है "।  

एक और बात जो आरडी बर्मन के संगीत को खास और अलग बनाती  थी वो थी उनकी खुद की गायकी , आरडी बर्मन अपने नाम " पंचम " कि मानिद पंचम सप्तक के गायक थे,  ऊँचे सुर में गाते थे।  आवाज़ में थोड़ी कर्कशता थी मगर बेसुरे नहीं  थे कभी।  " समंदर में नहा के और भी नमकीन हो गयी हो " " तुम क्या जानो मोहोब्बत क्या है " " मेहबूबा मेहबूबा " " दिल लेना खेल है दिलदार का " इन गानो में आरडी का म्यूजिक तो था ही लेकिन इन गानो का यूएसपी आरडी बर्मन की  आवाज़ थी।  आरडी बर्मन के जाने से जो वैक्यूम पैदा हो सकता था उसकी भरपाई ए आर रहमान ने कर दी।  मेरे हिसाब से रहमान आरडी 2.0 है।  वही सारे गुण।  टेक्नोलॉजी का बेमिसाल इस्तेमाल , प्रयोगधर्मिता , रेंज  और वैसी ही हटकर आवाज़।  फिल्म्फ़ेयर ने जब " आरडी बर्मन अवार्ड फॉर बेस्ट इमर्जिंग म्यूजिशियन " शुरू किया तो पहला अवार्ड एआर रहमान को ही मिला था।  





Tuesday, December 17, 2013

बर्ल्ड बाइड बेब

ब्लॉग के पेजव्यूज़ का लेखा- जोखा देख  रहा था , इंडिया, यूएसए और यूके के पेज व्यूज़ तो वाज़िब लगते है।  फेसबुक के बहोत सारे परिचित है इन तीन देशों से। कुछ अच्छे दोस्त भी रहते है यूएस/यूके में।  लेकिन यूक्रैन , जमैका , पोलैंड , घाना यहाँ कौन देखता होगा ??   ये शायद वो लोग है जिन्होंने कुछ और सर्च करना चाहा होगा और मेरे ब्लॉग में घुस गए होंगे।  खैर जो भी हो , सोच के अच्छा लगता है , जहाँ संत न पहुचे वंहा संत की वाणी पहुच गयी।


Monday, December 16, 2013

ARR is back



ARR is back ...Can bet my last penny for the Music is gonna be  a blockbuster ..Imtiaz Ali best knows how to make ARR produce the freshest tracks .. Rockstar still rocks....See this teaser trailer and  if u are a staunch ARR fan , u will start havin goosebumps...Rahmanishq  ..Rahmania ...whatever u call it. 

Chinese Humor

कल की पोस्ट चाइने का माल नी है पढ़ने के बाद दो लोगों ने फ़ोन लगाये। उनमे से एक ने चीन को लेकर थोड़ी देर चर्चा की और दूसरे ने चीन के ऊपर जोक  सुनाया  , 

एक हिंदुस्तानी कि चाइनीज़ महिला   से   शादी होती है , २ साल के बाद चाइनीज़ महिला गुज़र जाती है। संता  उसके यहाँ शोक व्यक्त करने आता है और कहता है " यार दुखी न हो , चाइनीज़ माल था  और कितना चलता " 

फिर चीन पे उनको  एक  जोक मैने सुनाया 

संता के यहाँ दूसरी संतान पैदा होती है , बर्थ सर्टिफिकेट में संता उसका नाम लिखवाता है "किआंग ज़ेपिन" 

लोग पूछते है , ये चाइनीज़ नाम क्यों ? 

 संता जवाब देता है " क्योकि मैंने अखबार में पढ़ा था कि दुनिया मै पैदा होने वाला हर दूसरा बच्चा चाइनीज़ होता है " 

चीन पे एक दिन डिटेल में लिखूंगा, IA 


Sunday, December 15, 2013

चाइने का माल नी है

आज साप्ताहिक हाट में सब्ज़ियाँ खरीदने गया था ,  सेब का एक दुकानदार ग्राहकी खीचने के लिए चिल्ला चिल्ला के बोल  रहा  रहा था -

सब सैमसंग नोकिआ है , सब  सैमसंग नोकिआ है  , चाइने का माल नी है .... 
सब सैमसंग नोकिआ है , सब  सैमसंग नोकिआ है  , चाइने का माल नी है . … 

ठेले - साइकिल पे माल बेचने वाले , हाट में या सड़कों पे दुकानदारी करने वाले ये स्ट्रीट वेंडर्स वाकई स्ट्रीटस्मार्ट होते है। इसी साप्ताहिक हाट में आँवले का एक दुकानदार " डाबर आँवला  -डाबर आँवला " की आवाज़ लगाता है , लास्ट दो सालों से मै उसी से आँवले खरीदता हूँ।  पहली बार उसकी  "डाबर आँवला" पंचलाइन से ही उसकी दुकान पे गया था।  बचपन में गाँव के साप्ताहिक हाट में एक आदमी चूहा मार बेचने आता था , उसकी पंचलाइन थी " अभी मार " , कई साल तक हर गुरुवार सुनी  उसकी "अभी मार- अभी मार " ऐसी बैठी दिमाग में कि आज तक याद है।  

ट्रेन के वेंडर्स तो और कमाल होते है लास्ट वीक ट्रेन में सफ़र करते दो स्ट्रीट स्मार्ट वेंडर्स से सामना हुआ , एक चाय बेचने वाला था उसकी पंचलाइन थी " सबसे ख़राब चाय पीलो - सबसे ख़राब चाय पीलो "। जब उससे पूछा कि क्या चाय इतनी ख़राब है ??  तो बोला सर आप एक दो घूंट पियोगे तब तक यही खड़ा रहूँगा ताकि आप पीने के बाद गुस्सा होकर एक दो थप्पड़ लगा सको।  5 -6 रूपए के नॉर्मल रेट कि जगह उसकी चाय 10 रूपए कि थी और निस्संदेह रेलवे में मिलने वाली चाय के मापदंड से निहायत ही उम्दा थी।    

एक और वेंडर मिला जो फ्रूटी बेच रहा था , उससे मिलके समझ में आगया कि जिसने भी कहा है कि ' आवश्यकता ही अविष्कार कि जननी है ' उसने कितना सटीक कहा है।  मैंने उससे फ्रूटी खरीदी जो 15 रूपए कि थी , 20 का नोट देने के बदले उसने जो 5 रूपए वापिस किये वो नीचे तस्वीर  में  देखिये - 




2 रूपए के दो सिक्कों के बीच में 1 रूपए के सिक्के को सैंडविच करके उसको सैलो टेप से चिपका कर तैयार हुआ 5 रूपए का सिक्का। समझाने कि आवश्यकता ही नहीं है कि कितना कारगर उपाय है ये चिल्लर कि मगज़मारी से निपटने का।  भारतीय जुगाड़ का एक और बेहतरीन उदाहरण। 









Saturday, December 14, 2013

आप की जीत के मायने

आम आदमी पार्टी की चर्चा है हर तरफ , दिल्ली के विधान सभा चुनाव में जो करिश्मा हुआ वो वाकई हतप्रभ कर देने वाला है।  आप की जीत और अरविन्द केजरीवाल के बारे में लगातार लिखा जा रहा है।  गली के नुक्कड़ो से लेकर गांव कि चौपालों तक , पान कि दुकानो से लेकर बियर बारों तक  , आफिसों में , घरों में हर जगह आम आदमी पार्टी का गहन विश्लेषण हो रहा है, एक्सपर्ट कमेंट्स की  जा रही है।  एक परिचित  ने आज कहा कि अरविन्द केजरीवाल IRS में रहते तो 100 करोड़ कमाते , अब दिल्ली के cm बनकर 1000 करोड़ कमाने कि जुगत में है।  एक कि एक्सपर्ट कमेंट थी कि केजरीवाल बड़े बुद्धिमान इंसान है , उन्होंने अन्ना  हज़ारे के दम पर buzz क्रिएट  कि और उस buzz को वोट्स में कन्वर्ट  कर लिया।सोशल नेटवर्किंग साइट्स भरी पढ़ी है एंटी और प्रो केजरीवाल ओपिनियंस से।    देश में ज़म्हूरियत है और हर इंसान को अपने ख़यालात ज़ाहिर करने की आज़ादी है।

मै  कोई Psephologist नहीं हूँ , नाही इतना बुद्धिमान कि आम आदमी पार्टी या किसी भी राजनीतिक पार्टी की जीत या हार की  तार्किक विवेचना कर सकूँ।  फिर भी, आम आदमी पार्टी का देश के राजनीतिक क्षितिज पर आना और यूँ छा जाना मेरी नज़र में एक बड़ी घटना है , भारतीय राजनीति का बिग बेंग है।  अगर ये कारनामा आम आदमी पार्टी  की जगह किसी और ने किया होता और केजरीवाल की जगह और कोई भी रहा होता तो भी इस घटना का वही महत्व होता।  अब से पहले हमने ये सिर्फ विदेशी मुल्कों में देखा था कि कोई सफल व्यवसायी सब कुछ छोड़ कर न्यूयॉर्क का मेयर बन गया या एक औसत सा वकील 10 साल के भीतर राजनीतिक सीडियां चढ़ते हुए देश का राष्ट्रपति बन गया।  हमारे देश में सिर्फ राज्य सभा के नॉमिनेशंस में सचिन तेंदुलकर या लता मंगेशकर  राज्यसभा mp बन सकते है, अगर चुनाव लड़कर आने को कहाँ जाता  तो बहोत मुमकिन है ये लोग mp बनने से  इंकार कर देते । हमारे यहाँ राजनीती बपोती है उन सामंती पार्टियों की जिन्होंने सालो की मेहनत से खुद को राजनीति के अखाड़े में स्थापित किया है।  प्रबुद्ध एवं अभिजात वर्ग सिर्फ राजनीतिक हालत पर चिंतन एवं क्रंदन करता आया है , कभी राजनीति में उतरा नहीं।  साल दर साल उजागर होते घोटाले , एब्सर्डिटी की हद से भी नीचे जाने वाली बयानबाज़ी , भाई भतीजावाद ये सब होने के बाद भी आम इंसान सिर्फ यही सोच के रह जाता है कि हम क्या कर सकते है। साला सिस्टम ही ऐसा ही है।  

इस लिहाज़ से आम आदमी पार्टी का उदय एक मिसाल है ,  आम आदमी पार्टी ने इस सोच को पुख्ता किया है कि सिस्टम को बदला जा सकता है।  देश स्थापित राजनीतिक दलों और दलालों की मिल्कियत नहीं है।  एक साल के भीतर राजनीतिक परिद्र्श्य पर ऐसे छा जाना प्रेरित करेगा युवाओ को राजनीति की मुख्य धारा में आने को।  


Thursday, December 12, 2013

शादी के ब्राइट इफेक्ट्स

आज मोबाइल पर एक जोक  आया , कुछ यूँ था : 

एक आदमी ट्रैन में चढ़ रहा था कि आकाशवाणी हुई " बच्चा इसमें मत चढ़ ये ट्रैन पटरी से उतरने वाली है " 
उस आदमी ने बस से यात्रा करने का विचार किया , जैसे ही वो बस में बैठने लगा फिर से आकशवाणी हुई " बच्चा इस बस में मत बैठ ये बस खाई में गिरने वाली है " 
उस आदमी ने फिर विचार बदला और हवाई जहाज़ से जाने का सोचा। जैसे ही वो हवाई जहाज़ में बैठने गया , फिर से आकाशवाणी हुई " बच्चा इस हवाई जहाज़ में मत बैठ ये क्रैश होने वाला है " 

फाइनली वो आदमी परेशां हो उठा और उसने आसमान को देख कर पूछा " ये कौन है ? जो बार बार आकाशवाणी कर मुझे बचा रहा है ?? 

जवाब आया " बच्चा में भगवान् हूँ " 

आदमी ने बड़ी पीढ़ा से कहाँ " भगवान् जिस दिन मै  घोड़ी पे चढ़ रहा था उस दिन क्या आपका गला ख़राब था ? " 

ये लतीफा एक अननोन नंबर से आया था , जिसने भी भेजा होगा वो करीबी ही रहा होगा क्योकि आज( 13 दिसंबर को)  मेरी शादी की  सातवी सालगिरह है।  

शादी को लेकर जोक्स बनाना और पत्नियों को लेकर व्यंग करना बड़ा ही आम है।  लेकिन जो लोग ऐसा करते है वो उन लोगो कि राह में मुश्किल पैदा करते है जिन्हे अभी शादी करना है।  ऐसे जोक्स पढ़ पढ़ के एस्पायरिंग लड़के लड़कियां कंफ्यूज होते है , डर भी जाते है। रही सही कसर टीवी के सोप्स  पूरी कर देते है।    लगता है शादी करके ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी।  आज़ादी छिन जाएगी।  लड़कियों को सबसे बड़ा डर सामूहिक परिवार और घर के कामों को लेकर होता है। लड़कियों के दिमाग में यह भी  आता है कि   पता नहीं कैसा जल्लाद निकलेगा पति और सास- ससुर ड्रैकुला के रिश्तेदार जो हर वक़्त खून पियेंगे। कई लोग एक्सपर्ट कमेंटस् देते मिल जाएंगे " भाई शादी तो एक लाटरी है " " शादी का  लड्डू जो खाए पछताए जो न खाए वो भी पछताए " आदि आदि।  शादी पे एक और कोट पढ़ा था कभी " Everyone should get married after all happiness is not the only thing in life "  शादी के ऊपर हज़ारों quotes है ऐसे।  शादी की  बात आते ही हर विवाहित एकदम मुखर और दर्शनशास्त्री टाइप हो जाता है। मेरे ख्याल से आदमी  के लिए शादी एक मेटामॉरफोसिस है , जो उसे इल्लीनुमा कीड़े से पतंगा बना देती है।  इसीलिए ये देखा गया है कि शादी के बाद आदमी ज्यादा फड़फड़ाने लगता है।  शादी पे एक और बड़ा सतही कोट है " marriage is the price that men pay for sex and sex is the price that women pay for marriage" ये सिर्फ शब्दो की बाज़ीगरी है  इसमें कोई तर्क या यथार्थ नहीं है ।  फरहान अख्तर और विद्या बालन की मूवी आने वाली है " शादी के साइड इफेक्ट्स " मेरे ख्याल से ये मूवी शादी जैसे निहायत ही नाज़ुक और जस्बाती विषय के साथ न्याय करेगी और बहोत सारे डरे हुए और कन्फ्यूज्ड युवा और युवतियों को प्रेरित करेगी शादी के बंधन में बंधने के लिए। शादी के साइड इफेक्ट्स हो या न हो शादी के बहोत से ब्राइट इफेक्ट्स होते है , जो शादी के बाद ही समझ आते है।
बिना मरे स्वर्ग नहीं है।  

और आखिरी में ये भी -

शादी करने के बाद और मोबाइल फ़ोन खरीदने के बाद दिल में क्या ख्याल आता है ?
ये कि थोड़े दिन और रुक जाता तो ज्यादा बेहतर मॉडल मिल जाता ;)







चित्र कथा

एक चित्र एक हज़ार शब्दो के बराबर होता है।
ये है हजार हजार शब्द के दो निबंध , एक हमारी शिक्षा प्रणाली पर और दूसरा हमारी जीवन  प्रणाली पर।  दोनों निबंध मेरे लिखे नहीं है , संकलित है।

Sunday, December 8, 2013

कुत्तों की पॉपकॉर्न

आज सुबह दवाई कि दुकान पर कुत्तों  के पॉपकॉर्न का पैकेट रखे देखा।  दुकान वाले ने भी बड़ी शान से सबसे आगे सजा के रखा  था।  कितने नसीब वाले होंगे वो सभी कुत्ते जिन्हे ये पॉपकॉर्न खाने को मिलती होगी।  मजे कि बात है , इंसान के खाने का ACT II instant पॉपकॉर्न पांच रूपए का आता है जबकि ये वाला 99 रूपए का था।  दुकान वाले से पूछा कि कोई खरीदता भी है ऐसी चीज़ें तो बोला सर कुछ भाभी लोग है जो अपनी खुद कि और बच्चो कि दवाइयां लेने नौकरो को पहुचाती है लेकिन कुत्तों के खाने का सामान खुद लेने आती है।  

मेरे हिसाब से इस पॉपकॉर्न का नाम PUPPYCORN होना चाहिए था , ज्यादा अपीलिंग लगता।  


Friday, December 6, 2013

जगजीत सिंह ज़िंदा है

मिली हवाओ में उड़ने की वो सज़ा  यारों
के मै ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों
मै बे-ख्याल मुसाफिर वो रास्ता यारों
कहाँ था बस में मेरे उसको रोकना यारों
मेरे कलम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी
के अपने बारे में कुछ भी ना लिख सका यारों
तमाम शहर ही जिसकी तलाश में गुम था
मै उसके घर का पता किस से पूछता यारों। ..................... वसीम बरेलवी का कलाम है।

जगजीत सिंह ज़िंदा है।  किसी कि C ड्राइव में किसीकी E ड्राइव में किसी  की पेन ड्राइव में और बहोत सारी लॉन्ग ड्राइव्स में ।


Juggernaut


आज TV पे एक बाबाजी को ये कहावत बोलते सुना  ," भगवान् जगन्नाथ के रथ के सामने चलने वाले श्वान ( a dog ) को भी यह भ्रम रहता है कि रथ  वही खीच रहा है " ( महिमा  भगवान की  है , यहाँ  श्वान का महिमामंडन  नहीं हो रहा है ।  )

अंग्रेजी का  " Juggernaut " शब्द जगन्नाथ से बना है।  ऐसा कहा जाता है कि पुराने समय में जब ओडिशा के पूरी में भगवान जगन्नाथ कि रथ यात्रा निकलती थी तो उनके विशालकाय रथ के पहियों के नीचे भक्त खुद को आहूत कर देते थे और मोक्ष पाते   थे।  अंग्रेजी में Juggernaut का मतलब है एक विशालकाय वस्तु , आर्गेनाईजेशन , team , Naval Ship।   जगन्नाथ  ( जगत +नाथ ) मतलब दुनिया के स्वामी।   सामान्यतः जिन लोगो का नाम जगन्नाथ होता है उनको लोग प्यार से जग्गा या जग्गू बुलाते है।


Tuesday, December 3, 2013

जिहाले मस्ती मुकुंद रंजिश"


जिहाल-ए -मिस्कीन मकुन बरंजिश , बेहाल-ए -हिजरा बेचारा दिल है 
सुनाई देती है जिसकी धड़कन , तुम्हारा दिल या हमारा दिल है

( मुझे रंजिश से भरी इन निगाहों से ना देखो क्योकि मेरा  बेचारा दिल जुदाई के मारे  यूँही बेहाल है।    जिस दिल कि धड़कन तुम सुन रहे हो वो तुम्हारा या मेरा ही दिल है ) 

ये गाना उन  दिनों का है जब मै तीसरी या चौथी class में था।  मिथुन चक्रबोर्ती और अनीता राज़ बस की छत पे और बैकग्राउंड में ये गाना , और गाने के बीच में मिथुन दादा का " कोई शक़ " बोलना।  कुछ ऐसी कशिश थी 'गुलामी ' के इस गाने में कि दिल और दिमाग में उतर गया।  बाद में जब समझ और शौक आया तो जाना कि ये गाना 'गुलज़ार' ने लिखा था, LP ( लक्ष्मीकांत -प्यारेलाल ) ने compose किया था   और लता मंगेशकर और शब्बीर कुमार ने गाया था।  लेकिन गाने कि पहली लाइन क्या है ये कभी समझ नहीं आया। इसके बाद की lyrics हिंदी में थी सो समझ आ जाती थी।    कई साल तक इस गाने को मै  " जिहाले मस्ती मुकुंद रंजिश" सुनता रहा और गाता भी रहा।  मज़े कि बात थी कि गुजिश्ता सालो में कभी कोई ऐसा नहीं मिला जिसे ये गाना सही गाते पाया हो।आज बहोत दिनों बाद ये गाना फिर से सुना , बीबी से पूछा " ये गाना सुना है ? तो तपाक से बोली , हाँ , गुलामी का गाना है मिथुन बस के ऊपर बैठ के गाता है।  मैंने पूछा पहली लाइन क्या है तो बोली " जिहाले मस्ती मुकुंद " करके कुछ है , पूरी समझ नहीं आती लेकिन गाना बढ़िया है।  कुछ ऐसी सीरत है इस गाने में कि इतनी क्लिष्ट पहली लाइन के बावजूद आज भी ये गाना इतना अच्छा लगता है।  गुलामी 1985 में आयी थी।बहरहाल बात lyrics की , गूगल की कृपा से मैंने एक साल पहले इस गाने की पहली लाइन समझी और ये जाना कि  गुलज़ार ने ये गाना अमीर खुसरो कि एक बेहतरीन सूफियाना कविता से प्रेरित होकर बनाया था जिसकी पहली लाइन कुछ इस तरह है -

जिहाल-ए -मिस्कीन मकुन तग़ाफ़ुल ,दौड़ाए नैना  बनाये बतियां 
 के ताब-ए-हिजरां न  दरम ए जाना , न लेहो काहे लगाये छतियां 

(मतलब , आँखे दौड़ाके और बाते बनाकर मेरी बेबसी को नज़रअंदाज़ ( तग़ाफ़ुल )  मत करो।  मेरे सब्र कि अब इन्तेहाँ हो गयी है , मुझे सीने से क्यों नहीं लगाते ) पहली लाइन पर्शियन में है और दूसरी बृज भाषा में। गुलज़ार ने इसके पहले 'ग़ालिब' से प्रेरित होकर एक गाना लिखा था " दिल ढूँढता है फिर वही फुर्सत के रात  दिन" जो मौसम फ़िल्म में था।इरशाद कामिल का  " रांझणा " फ़िल्म में लिखा " तू  मन शुदी " भी अमीर ख़ुसरो की poem से inspired है।  

" मन तू शुदम  तू मन शुदी ,मन तू शुदम तू जान शुदी 
ताकस ना गोयद बाद अजीन , मन दीगरम तू दिगरी "

( मै तू हो गया हूँ और तू मै हो गयी है , मै जिस्म हूँ तू जान है , इसके बाद कोई नहीं कह पायेगा कि तू और मै जुदा है।  ) 

इरशाद कामिल का " कुन फाया कुन " भी क़ुरान कि आयत से प्रेरित है जिसका मतलब है " आपने ( अल्लाह ने ) कहा हो , और सब हो गया " .  "जिहाले मस्ती "  की मस्ती यु ही बनी रहेगी , LP  का म्यूजिक ही कुछ ऐसा था।  जिन्हे लिरिक्स पता है उनके लिए इस गाने का अलग ही मज़ा है जिन्हे नहीं पता उन्हें कोई फर्क नहीं पढ़ना। .. " कोई शक " 

Sunday, December 1, 2013

Whats Down

मेरे मोबाइल पे कल से whatsapp  नहीं चल रहा है।  ऐसा लग रहा है जैसे दिल को खून कि आपूर्ति रुक गयी हो , फेफड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिल रही हो।  गोया  कि technology ना हुई biology हो गयी।

बड़ा ही अजीब लग रहा है , खिन्न सा।  क्या पता क्यों ?