Wednesday, September 4, 2013

HAPPY TEACHERS DAY

 
उम्दा शायर है  एक ,कश्मीरीलाल ज़ाकिर।  लिखते है , " मुझमे जो कुछ अच्छा है सब उसका है , मेरा जितना चर्चा है सब उसका है "।  अपने सभी शिक्षकों  के सन्दर्भ में मै ज़ाकिर साब की इस बात से सौ फ़ीसदी इत्तेफाक़ रखता हूँ।  मेरे सारे गुण उनके है जिन्होंने मुझे पढाया और सारे अवगुण मेरे अपने कमाए है। 
 
हर मुकम्मिल  इन्सान के पीछे कोई औरत -आदमी भले हो न हो , एक अच्छा शिक्षक ज़रूर होता है। अर्जुन होने के लिये द्रोणाचार्य का होना  indispensable है।  एकलव्य होने के लिये भी द्रोणाचार्य की ही प्रेरणा लगती है। 
 
चाणक्य बोलते थे " शिक्षक को साधारण मत समझना , विकास और प्रलय उसकी गोद में खेलते है " । सही है बिलकुल,  इसीलिए कुछ लोग इमारतें बनाते  है और कुछ उन इमारतों में हवाईजहाज़ टकराते है।  गंगोत्री शिक्षक ही है दोनों किस्म के लोगो की।  दूसरा वाला demagogue है लेकिन है तो गुरु ही ना ? अफज़ल गुरु
 
इतवारू (मोटू )
अभी एक दिन खुद को एक स्कूल  campus   में पाया , । गया किसी और काम से था लेकिन दो एकम दो और अ अनार का सुनके खुद को रोक नहीं पाया।ये स्कूल जिस राज्य में है , आजकल उसका चप्पा -चप्पा नाप रहा हूँ।  जिस रास्ते पर जाओ बड़े बड़े विज्ञापन नज़र आते है सरकार और नेताओ का गुणगान करते हुए। जंगलों के बीच एक गाँव के रास्ते पे एक होर्डिंग पे लिखा था कि राज्य की growth रेट National Average से ज्यादा है , पता नहीं किसको दिखाने को लगाया था क्योकि लोकल लोग तो अभी ABC तक ही  नहीं पहुंचे है, GDP तो दूर की कौड़ी है। 
 
माधवी 
बरहाल बात  स्कूल की , बच्चे ठीक वैसे थे जैसे किसी बड़े CBSE /ICSE स्कूल के होते है , उतने ही मुखर , उतने ही खुशनुमा और शरारती , सम्भावनाओ ने भरे कच्ची मिट्टी के घड़े। आसमानी नीले रंग की यूनिफार्म और आँखों में पूरा आसमां।  ज्यादा ख़ुशी ये देखकर हुई कि लड़कियां ज़्यादा थी।  Economics  की भाषा में बोले तो DEMAND SIDE एकदम दुरुस्त थी। बरसते पानी में पढने आने को तैयार बच्चे और बच्चियां।  अब्दुल कलाम और कल्पना चावला बनने को लालायित बच्चे -बच्चियां। 
 
     
Problem SUPPLY SIDE पे थी , बदबूदार कमरा , कच्चा फर्श , और बिजली भी नहीं , जबकि ये राज्य अपने विज्ञापनों में बखान करता है कि राज्य की बिजली दुसरे राज्यों को रोशन कर रही है।  और infrastructure से कंही ज्यादा dishearten करने वाली बात ये कि trained और  qualified teachers भी नहीं।  class 3 के बच्चो को पढ़ा रहा नौजवान खुद बारहवी पास स्थानीय था , जिसे अतिथि शिक्षक यानी guest faculty के रूप में 120 रूपए प्रतिदिन पे  adhoc रखा गया था क्योकि स्कूल में permanent teacher की पोस्टिंग नहीं हुई थी।  और मैंने जब उससे अंग्रेजी में पूछा  कि WHAT IS THE NAME OF UR STATE तो उसका जवाब था INDIA.   क्लास में  गाँधीजी  , नेहरूजी और इंदिरा गाँधी की तस्वीर भी  लगी थी , आंसू टपकते होंगे रात में उस तस्वीर से। 
 
सुमन 
मेरी बेटी अभी CLASS -1 में भी नहीं पहुची है , उसकी क्लासरूम air-conditioned है , उसको Multi -Media gadgets से  बाराखडी सिखाई जाती है और उसकी classteacher flawless अंग्रेजी में बोलती है। उसके लिये संभावनाओ के सारे दरवाज़े खुले हुए है लेकिन माधवी , इतवारू (मोटू ) और सुमन    का क्या दोष ???? ये सिर्फ इसलिये अच्छी शिक्षा नहीं पा सकते क्योकि इनके पेरेंट्स AFFORD नहीं कर सकते और उससे ज्यादा शर्मनाक बात ये कि सरकार भी ये सुनिश्चित नहीं कर रही। 
 
कितना घोर अपराध है ये देश की आनेवाली नस्लों के साथ , और कैसी विडम्बना है ये कि हमारे देश में शिक्षा की गुणवत्ता मतलब QUALITY इस बात पर depend करती है कि कोई कितना afford कर सकता है।  Right to Education is nothing but a fuckin cliche . 
 
HAPPY TEACHERS DAY............................

मेरी बेटी का स्कूल 

3 comments:

  1. हमारी विडम्बना ये है की, जब तक कोई भरपेटीया राजनीती में नहीं आता, भूखे राज करते रहेंगे ...और यदि सब साक्षर हो गए तो इनकी सरकार की चलेगी??

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  2. aise incidents hi hume yaad dilati hai ki hum apne levelpe kuch karein

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  3. Hard hitting write up. I loved the punchline. The government only ensures that a significant part of the populace learn just about enough to become security guard and office boys. It is a well thought out plan which is working sadly, very well.

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