एक परिचित ने कल दो कहानियाँ सुनाई। भाव यथावत है लेकिन मैंने दोनों को संक्षिप्त कर दिया है।
कहानी - 1
गराज के बराबर से बने कमरे में वो बूढ़ा जंग लगे लोहे के पलंग पर लेटे-लेटे सारी रात खांसता रहता था। घर के लोग उसको कोसते और उसके सिधर जाने का रास्ता देखते थे। एक दिन बूढ़ा गुज़र गया। घर के लोगों ने उस रात चेन की नींद सोये। रात भर कोई खलल नहीं और कोई शोर नहीं। अगली सुबह उठे तो पाया कि रात को चोरो ने पूरा घर साफ़ कर दिया।
कहानी - 2
बहू और बेटे ने बूढ़े को धक्के देकर घर से निकाल दिया। बूढ़े ने सिर्फ एक शाल उठायी और उसे लपेट कर घर से बहार जाने लगा। पोता दौड़कर सामने खड़ा हो गया और बोला " दादाजी आप ये शाल नहीं ले जा सकते "। पोते ने शाल के दो टुकड़े किये और आधा टुकड़ा दादा से छीन के घर में ले आया।
माँ ने पूछा " अरे ये चीथड़े -चीथड़े हुई शाल हमारे किस काम की बेटा ??
बेटा बोला " माँ , जब पापा घर से जाएंगे तो उनको काम आएगी।
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