Sunday, December 15, 2013

चाइने का माल नी है

आज साप्ताहिक हाट में सब्ज़ियाँ खरीदने गया था ,  सेब का एक दुकानदार ग्राहकी खीचने के लिए चिल्ला चिल्ला के बोल  रहा  रहा था -

सब सैमसंग नोकिआ है , सब  सैमसंग नोकिआ है  , चाइने का माल नी है .... 
सब सैमसंग नोकिआ है , सब  सैमसंग नोकिआ है  , चाइने का माल नी है . … 

ठेले - साइकिल पे माल बेचने वाले , हाट में या सड़कों पे दुकानदारी करने वाले ये स्ट्रीट वेंडर्स वाकई स्ट्रीटस्मार्ट होते है। इसी साप्ताहिक हाट में आँवले का एक दुकानदार " डाबर आँवला  -डाबर आँवला " की आवाज़ लगाता है , लास्ट दो सालों से मै उसी से आँवले खरीदता हूँ।  पहली बार उसकी  "डाबर आँवला" पंचलाइन से ही उसकी दुकान पे गया था।  बचपन में गाँव के साप्ताहिक हाट में एक आदमी चूहा मार बेचने आता था , उसकी पंचलाइन थी " अभी मार " , कई साल तक हर गुरुवार सुनी  उसकी "अभी मार- अभी मार " ऐसी बैठी दिमाग में कि आज तक याद है।  

ट्रेन के वेंडर्स तो और कमाल होते है लास्ट वीक ट्रेन में सफ़र करते दो स्ट्रीट स्मार्ट वेंडर्स से सामना हुआ , एक चाय बेचने वाला था उसकी पंचलाइन थी " सबसे ख़राब चाय पीलो - सबसे ख़राब चाय पीलो "। जब उससे पूछा कि क्या चाय इतनी ख़राब है ??  तो बोला सर आप एक दो घूंट पियोगे तब तक यही खड़ा रहूँगा ताकि आप पीने के बाद गुस्सा होकर एक दो थप्पड़ लगा सको।  5 -6 रूपए के नॉर्मल रेट कि जगह उसकी चाय 10 रूपए कि थी और निस्संदेह रेलवे में मिलने वाली चाय के मापदंड से निहायत ही उम्दा थी।    

एक और वेंडर मिला जो फ्रूटी बेच रहा था , उससे मिलके समझ में आगया कि जिसने भी कहा है कि ' आवश्यकता ही अविष्कार कि जननी है ' उसने कितना सटीक कहा है।  मैंने उससे फ्रूटी खरीदी जो 15 रूपए कि थी , 20 का नोट देने के बदले उसने जो 5 रूपए वापिस किये वो नीचे तस्वीर  में  देखिये - 




2 रूपए के दो सिक्कों के बीच में 1 रूपए के सिक्के को सैंडविच करके उसको सैलो टेप से चिपका कर तैयार हुआ 5 रूपए का सिक्का। समझाने कि आवश्यकता ही नहीं है कि कितना कारगर उपाय है ये चिल्लर कि मगज़मारी से निपटने का।  भारतीय जुगाड़ का एक और बेहतरीन उदाहरण। 









2 comments:

  1. ऐसे ही एक फकीर की पंच-लाईन थी "जो देगा.... तो मरेगा, अभी देगा .... अभी मरेगा, नहीं देगा .... नहीं मरेगा". दरअसल उसका आशय 'भूख' से था.

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  2. ऐसे ही एक फ़कीर के धंधे की पंच-लाईन थी .... "जो देगा .... तो मरेगा, अभी देगा .... अभी मरेगा, नहीं देगा .... नहीं मरेगा". मरने-मराने की विचित्र हांक को लेकर .... लोग उसकी ओर आकर्षित होते और फकीरों की अफलातून दुआओं की मिथक के वशीभूत हो उसे कुछ न कुछ दे ही जाते. दरअसल 'मरने' से उसका आशय 'भूख' से रहता था.

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